वट सावित्री पूर्णिमा पर महिलाओं ने की वट वृक्ष की पूजा पति की लम्बी आयु और सुख समृद्धि के लिए करती हैं महिलाएं वृत
*धामनोद ।* मंगलवार को ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को वट सावित्री पूर्णिमा कहते हैं । इस दिन महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु और पूरे परिवार की सुख समृद्धि के लिए वृत करती हैं ।
आज भी नगर के नाग मंदिर स्थित वट वृक्ष पर सैकड़ों महिलाओं ने पूजन किया एवं वट सावित्री वृत्त की कथा का श्रवण किया । वहीं अभी महिलाओं ने एक दूसरे को कुमकुम टिकी लगाकर आम देकर लंबे सुहाग का आशीर्वाद लिया ।
इस वृत पर व्रत कथा में सत्यवान और सावित्री की कथा सुनाई जाती है । इसमें तीन दिन तक उपवास रखते हैं। हवन किया जाता है तथा वट वृक्ष की पूजा की जाती है। पूजन सामग्री-भीगे चने, कुंकू, चावल, फूल, फल, दक्षिणा आदि चढ़ाकर कच्चा सूत वट वृक्ष को लपेटकर परिक्रमा की जाती है।
वृत कथा में मद्र देश के राजा अश्वपति के यहाँ पुत्री सावित्री का जन्म हुआ। सावित्री ने सत्यवान की कीर्ति सुनकर उनके साथ विवाह कर लिया। जब यह बात नारदजी को मालूम हुई, तो वे राजा अश्वपति से जाकर बोले- "आपने भारी भूल की है। सत्यवान गुणसम्पन्न व धर्मात्मा अवश्य है, लेकिन वह अल्पायु है, केवल एक वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी।" नारदजी की बात सुन राजा अश्वपति उदास हो गए। विचार करके सारी बात अपनी पुत्री सावित्री को कह सुनाई। सावित्री ने नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय मालूम कर लिया। सावित्री के सास-ससुर नेत्रहीन थे। सावित्री ने ससुराल पहुँचते ही सास-ससुर की सेवा करना शुरू कर दिया। उसने जब जाना कि पति की मृत्यु का समय नजदीक है, तब सावित्री ने तीन दिन पूर्व से ही उपवास शुरू कर दिया। मृत्यु के दिन नित्य की भाँति उस दिन भी सत्यवान लकड़ी काटने जाने लगा, तब सावित्री भी सास-ससुर की आज्ञा से सत्यवान के साथ जाने को तैयार हो गई। सावित्री जंगल में जाकर लकड़ी काटने लगी और सत्यवान एक पेड़ की छाँव में सो गया। उस पेड़ के नीचे एक साँप रहता था, उसने सत्यवान को काट लिया। सावित्री अपने पति को गोद में लेकर रोने लगी, इतने में उधर से शंकरजी व पार्वती निकले। सावित्री'ने उनके पैर पकड़कर कहा कि- "आप मेरे पति को जीवित कर दो।" तब उन्होंने कहा-"आज बड़ पूजा की अमावस है। तू बड़ की पूजा कर तो तेरा पति जीवित हो जाएगा।" तब सावित्री ने बड़ की पूजा की, बड़ के पत्तों के गहने बनाकर पहने। जब धर्मराज के दूत सावित्री के पति को ले जाने के लिए आए, उसको देवी-विधान सुनाया, परन्तु उसकी निष्ठा और पतिप्रेम को देखकर उन्होंने सावित्री को वर माँगने को कहा।
सावित्री बोली - "मेरे सास-ससुर वनवासी व अंधे हैं, उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें।” यमराज ने "तथास्तु" कहा और सावित्री से लौट जाने को कहने लगे। यमराज की बात सुनकर सावित्री ने कहा- "मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई तकलीफ नहीं है। यह मेरा कर्तव्य है।" यह सुनकर यमराज ने और वर माँगने को कहा। सावित्री बोली- "मेरे ससुर का राज्य छिन गया है, वह उन्हें पुनः प्राप्त हो।" यमराज ने यह वर भी देकर सावित्री को लौट जाने को कहा, परन्तु सावित्री ने पीछा नहीं छोड़ा। तब यमराज ने तीसरा वर माँगने को कहा तो सावित्री ने पुत्रवती होने का वरदान माँग लिया। यमराज ने २०० पुत्र होने का वचन दिया। सावित्री फिर भी पीछे-पीछे चली, तो यमराज बोले-"अब क्या चाहती हो।" सावित्री बोली- "मुझे पुत्रवती होने का वचन देकर आप मेरे पति को तो ले जा रहे हो।" तब यमराज को अपनी भूल ज्ञात हुई तथा यमराज ने सत्यवान के प्राण वापस कर दिए।
सावित्री उस वट वृक्ष के पास आई, जहाँ उसके पति का मृत शरीर पड़ा था। उसमें जीवन का संचार हुआ तथा सत्यवान उठकर बैठ गए तथा माता-पिता को भी दिव्यज्योति वाला पाया। इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख को भोगते रहे।
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